चोटी की पकड़–43

रुस्तम ने वैसा ही किया। मुन्ना ने कहा, "तुम पास हो गए। याद रहे अब कल काम की बात बतलाऊँगी और परसों काला चोर पकड़ाऊँगी। मुझे रानी समझना। जब जिसको रानी समझने के लिए कहूँ, समझोगे। बाद को देखोगे, तुम्हारी मुराद पूरी हो गई। मतलब गठ गया।"


रुस्तम खुश हो गया। मुन्ना बुआ के कमरे में गई।

बुआ बैठी थीं, मुन्ना सामने खड़ी हुई। कहा, "खड़ी हो जाओ।" बुआ बैठी रहीं।

मुन्ना ने कहा, "खड़ी हो जा।"

बुआ के आँसू आ गए, खड़ी हो गईं। मुन्ना ने कहा, "इधर आओ।"

बुआ चलीं, मुन्ना बरामदे की तरफ बढ़ी। पहुँचकर कहा, "मैं जो पहले थी, अब वह नहीं। अब तुम्हारे लिए पहले मैं रानी हूँ। फिर तुम्हारी काम करनेवाली। पर काम मैं दरअसल रानीजी का करती हूँ। बात तुम्हारी समझ में आई?"

बुआ सहमीं। आँखें फाड़कर मुन्ना को देखने लगीं।

मुन्ना ने कहा, "हाथ जोड़कर हमको नमस्कार करो।"

बुआ की त्योरियाँ चढ़ीं। मुन्ना ने कहा, "नमस्कार करो, नहीं तो सिपाही बुलाऊँगी।"

बुआ ने कहा, "हमारे भतीजे को बुला दो। हम घर चले जाएंगे।"

मुन्ना ने मुस्कराकर कहा, "तुम्हारा भतीजा राजा का दामाद है, अपनी स्त्री से सुन चुका है। समझ गया है, राजा का क्या सम्मान है। गाँठ बाँधो, वह तुमसे नहीं मिल सकता। जाना चाहती हो तो तभी जा पाओगी जब रानी को सम्मान मिल जाएगा। तुमने सिखाने पर भी बात नहीं मानी। दासी का तुमने अपमान कराया, तुमको नहीं मालूम। हाथ जोड़ो, हम रानी हैं।

बुआ फिर भी खामोश रहीं। मुन्ना ने कहा, "यह काम हम तुमसे ले लेंगे ! हाथ जोड़ो, नहीं तो सिपाही बुलाएँगे। वह जबरदस्ती जोड़ाएगा।"

बुआ ने हथेलियाँ जोड़ीं।

मुन्ना ने कहा, "सिर से लगाओ।"

बुआ ने सिर से लगाईं।

मुन्ना ने कहा, "दो दफ़े और।"

   0
0 Comments